Old Pension Beneficiary News: महाराष्ट्र के राज्य कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत की खबर है। सरकार पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने पर विचार कर रही है। इस पेंशन योजना में सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद उनके मूल वेतन व महंगाई भत्ते का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में मिलता है।
यह मांग कर्मचारियों से काफी लंबे समय से चली आ रही है
सरकारी कर्मचारियों ने लंबे समय से पुरानी पेंशन योजना को वापस लागू करने की मांग की है। उनका तर्क है कि नई पेंशन योजना में उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद बहुत ही कम रकम मिलती है। वहीं पुरानी पेंशन योजना में उन्हें आराम से जीवन बिताने के लिए पर्याप्त रकम मिलती थी।
सरकार का प्रस्ताव
राज्य सरकार ने काफी विचार-विमर्श के बाद पुरानी पेंशन योजना के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। हालांकि, यह योजना पूर्ण रूप से नहीं बल्कि आंशिक रूप से लागू होगी। सरकार का प्रस्ताव है कि नवंबर 2005 से पहले चयनित किए गए लेकिन बाद में ज्वाइनिंग लेटर दिये गए करीब 26,000 कर्मचारियों को ही इसका लाभ मिलेगा।
पुरानी और नई पेंशन योजना का अंतर
पुरानी पेंशन योजना और नई पेंशन योजना में काफी अंतर है। पुरानी योजना में कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के दिन उसके मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 50 प्रतिशत भुगतान किया जाता था। लेकिन नई योजना में कर्मचारी के मूल वेतन और महंगाई भत्ते के रिटर्न में से 14 प्रतिशत तथा कर्मचारी के अंशदान में से 10 प्रतिशत ही पेंशन के रूप में मिलता है।
सरकार द्वारा तीसरी पेंशन योजना का प्रस्ताव
कर्मचारियों की मांगों को देखते हुए सरकार एक तीसरी पेंशन योजना लाने पर भी विचार कर रही है। इसमें पुरानी और नई पेंशन योजना के अंतर को पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। हालांकि इसके बारे में अभी कोई घोषणा नहीं की गई है।
कोर्ट का फैसला
इस बीच दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुरानी पेंशन योजना से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह एक महीने के भीतर पुरानी पेंशन योजना बहाल करे। हालांकि राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है और कोर्ट ने अगले आदेश तक हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि पुरानी पेंशन योजना को लेकर राज्य में सियासी गर्मागर्मी बढ़ गई है। कर्मचारी और सरकार दोनों ही इस मुद्दे पर अड़े हुए हैं। अब देखना होगा कि सरकार इसके संबंध में क्या फैसला लेती है और कर्मचारियों की मांगों को किस हद तक पूरा करती है।